
आज फिर वही कहानी याद आयी,
बुंदेलों से शुरू हुई थी वह लड़ाई।
वीरांगना ने किया था बलिदान,
फांसी को चूमकर भगत सुखदेव ने दे दी थी जान।
लाठी लेकर चल पड़े डांडी की ओर गाँधी,
जड़ से उखड गये शासक ऐसी आयी थी आंधी।
यह स्वंतत्र भारत की गाथा ऐसे ही नहीं रची है,
बड़े बड़े महान लोगों के खून से लिखी और बलिदान से सींची है।
यूं तो आजादी के संघर्ष और भी कईं हुए हैं,
विश्व भर में लोगों के ऐसे और भी चर्चे हुए हैं,
नमन है उन सभी वीर सैनानियों को,
जो अर्पित हो गए अपने देश को,
याद रहे शान्ति का मार्ग पर चलना मामूली बात नहीं है,
परन्तु आज़ादी की ऐसी विजय ही केवल सही है।
पूरे भारतवर्ष में यह लहर उमड़ रही है,
अब फिर हमारे सामने वही बलिदान की घडी है।
आज फिर सामने खड़ी ही गयी हैं ऐसी समस्याएं,
मिलकर करें सामना नहीं तो मिलेंगी केवल आपदायें।
कुछ शत्रु बाहर खड़े हैं लेकर अपने औजार,
कुछ कर रहे हैं मौत और खौफ का व्यापार।
लेकिन पहले हमें अंदर के हमारे द्वेष को मिटाना है,
एक भाई को अपने दूसरे भाई से मिलाना है।
जात पात, धर्म और रंग,
सब भूलकर एक हो जाना है।
चूँकि एकजुट होकर जब जब खड़े हुए हैं हम,
बड़े से बड़े दुश्मन ने तोडा दिया है अपना दम।
इस स्वंत्रता दिवस पर हम लेंगे ऐसा प्रण,
फिर कहलायेगा भारत स्वर्ण चिड़िया,
लगा देंगे अपने शरीर का एक एक कण।
मन से स्वच्छ, और सोच से आत्मनिर्भर,
जमा देंगे धाक भारत की फिर से पुरे विश्व पर।
जय हिन्द।।